दादाभाई नौरोजी जीवन परिचय | Dadabhai Naoroji biography in Hindi-
Dadabhai Naoroji – दादाभाई नौरोजी भारतीय इतिहास के एक महान व्यक्ति के नाम से जाने जाते है। वे एक पारसी बुद्धिजीवी व्यक्ति, शिक्षप्रेमि, कॉटन के व्यापारी और साथ ही भारतीय स्वतंत्रता अभियान के महान राजनितिक नेता भी थे।
दादाभाई नौरोजी जीवन परिचय – Dadabhai Naoroji biography in Hindi
पूरा नाम – दादाभाई पालनजी नौरोजी
जन्म – 4 सितंबर 1825
जन्मस्थान – बम्बई
पिता – पालनजी दोर्डी नौरोजी
माता – माणिकबाई
शिक्षा – 1845 में बंम्बई के एलफिन्स्टन विश्वविद्यालय से उपाधि संपादन की।
विवाह – गुलाबी के साथ।
जन्म – 4 सितंबर 1825
जन्मस्थान – बम्बई
पिता – पालनजी दोर्डी नौरोजी
माता – माणिकबाई
शिक्षा – 1845 में बंम्बई के एलफिन्स्टन विश्वविद्यालय से उपाधि संपादन की।
विवाह – गुलाबी के साथ।
नौरोजी का जन्म मुम्बई में हुआ और उन्होंने Elphinstone College से शिक्षा ग्रहण की। उनकी कुशलता को निहारते हुए बरोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने उन्हें 1874 में अपने साम्राज्य का दीवान बनाया। नौरोजी महाराजा द्वारा दिए गए हर एक आदेश का पालन करते और इसी के चलते उन्होंने रहनुमाई मैदायस्ने सभा (जो मैदायस्ने मार्ग के पथप्रदर्शक थे) को 1 अगस्त 1851 को खोज निकाला और जरदुष्ट धर्म को पुर्नस्थापित करने में जूट गए। 1854 में उन्होंने इस समुदाय को आसानी से समझने के लिए एक प्रकाशन की खोज की, जिस से वे आसानी से लोगो के बिच रह सके। 1855 में उन्हें elphinstone College में गणित के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया, उस समय ऐसा शैक्षणिक दर्जा पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे। 1855 में उन्होंने कामा & कंपनी के सहयोगी बनने की इच्छा से लंदन की यात्रा की और साथ ही यह पहली भारतीय कंपनी बनी जो ब्रिटेन में स्थापित हुई। लेकिन 3 साल के अंदर ही नौरोजी ने इस्तीफा दे दिया। 1859 में उन्होंने खुद की एक कॉटन ट्रेडिंग कंपनी स्थापित की, जो बाद में दादाभाई नौरोजी & कंपनी के नाम से जाने जानी लगी, वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन के गुजरात में पहले प्रोफेसर बने।
1867 में दादाभाई नौरोजी ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना में सहायता भी की जो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की एक मुख्य संस्था थी जिसका मुख्य उद्देश् ब्रिटिशो के सामने भारतीयो की ताकत को रखना था। बाद में लंदन की एथेनॉलॉजिकल सोसाइटी ने इसे प्रचारविधान संस्था बतलाकर 1866 में भारतीयो की हीनभावना को दर्शाने की कोशिश की। इस संस्था को बाद में प्रसिद्द यूरोपियन लोगो का सहयोग मिला और बाद में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन में ब्रिटिश संसद पर अपना प्रभाव छोड़ना शुरू किया। 1874 में वे बारोदा के प्रधानमंत्री बने और 1885 से 1888 तक मुंबई लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य बने। वे सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा कलकत्ता में बॉम्बे के भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की स्थापना से पूर्व भारतीय राष्ट्रिय एसोसिएशन के सदस्य भी बने। भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रिय एसोसिएशन का एक ही उद्देश था। बाद में इन दोनों को मिलकर INC की स्थापना की गयी, 1886 में नौरोजी की भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। नौरोजी ने 1901 में अपनी किताब “Poverty And Un-British Rule in India” को प्रकाशित किया।
1892 से 1895 तक यूनाइटेड किंगडम भवन की संसद में उदारपंथी पार्टी के नेता थे और ब्रिटिशो के M.P. बनने वाले वे पहले एशियाई थे। उन्होंने ऐ.ओ. हुमे और एडुलजी वाचा के साथ मिलकर उस समय की विशाल पार्टी भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस को और अधिक शक्तिशाली बनाया। उनकी किताब गरीबी और भारत में ब्रिटिश नियमो विनाश करना, को उस समय भारतीय समाज का बहोत प्रतिसाद मिला। उन्होंने उस समय अपनी किताब में विदेशो में ले जाये भारतीय धन को वापिस लाने की भी मांग की। वे कौस्तस्कि और प्लेखानोव के साथ दूसरे अंतर्राष्ट्रीय समूह के सदस्य भी रह चुके थे।
दादाभाई नौरोजी ने विदेशो में भारत का वर्चस्व बढाया और यूरोपियन लोगो को भारतीयों की ताकत और बुद्धिमत्ता का दर्शन करवाया। ब्रिटिश कालीन भारत में ब्रिटिश अधिकारी भारतीयों से नफरत करते थे उस समय उन्होंने अपनी खुद की कॉटन कंपनी स्थापित कर के ब्रिटिश कंपनियों को कड़ी टक्कर दी थी। वे एक व्यापारी होने के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के महान क्रन्तिकारी नेता भी थे।
Dadabhai Naoroji Contribution –
- शिक्षा पूरी करने बाद उनकी बम्बई के एलफिन्स्टन कॉलेज में गणित के अध्यापक के रूप में नियुक्ती हुयी। इस कॉलेज में अध्यापक होने का सम्मान पाने वाले वो पहले भारतीय थे।
- 1851 में लोगोंमे सामाजिक और राजकीय सवालो पर जागृती लाने के लिये दादाभाई नौरोजीने ‘रास्त गोफ्तार’ (सच्चा समाचार ) ये गुजराती साप्ताहिक शुरु किया।
- 1852में दादाभाई नौरोजी और नाना शंकर सेठ इन दोनोंने आगे बठकर बंम्बई में ‘बॉम्बे असोसिएशन’ इस संस्था की स्थापना की। हिंदू जनता की दुख, कठिनाइयाँ अंग्रेज सरकार को दीखाना और जनता के सुख के लिये सरकार ने हर एक बात के लिये मन से मदत करनी चाहिये, ये इस संस्था स्थापना का उददेश्य था।
- 1855 में लंडन के ‘कामा और कंपनी’ के मॅनेजर के रूप में वहा गये।
- 1865 से 1866 इस समय में उन्होंने लंडन के युनिव्हर्सिटी कॉलेज मे गुजराती भाषा के अध्यापक के रूप में भी काम किया।
- 1866 में दादाभाई नौरोजी ने इंग्लंड में रहते समय मे ‘ईस्ट इंडिया असोसिएशन’ इस नाम की संस्था स्थापन की। हिंदु लोगोंके आर्थिक समस्या के बारेमे सोच कर और उन सवालोपर इंग्लंड में के लोगोंका वोट खुद को अनुकूल बना लेना ये इस संस्था का उददेश्य था।
- 1874 में बडोदा संस्थान के मुनशी पद की जिम्मेदारी उन्होंने स्वीकार की। बहोत सुधार करने के वजह से उनकी कामगिरी संस्मरणीय रही। पर दरबार के लोगों के कार्यवाही के वजह से दादाभाई नौरोजी कम समय में मुनशी पद छोड़कर चले गये।
- 1875 मे वो बम्बई महानगरपालिका के सदंस्य बने।
- 1885 मे बम्बई प्रातिंय कांयदेमंडल के सदस्य हुये।
- 1885 मे बम्बई मे राष्ट्रीय सभा की स्थापना की गयी उसमे दादाभाई नौरोजी आगे थे।
- 1886 (कोलकता), 1893 (लाहोर) और 1906 (कोलकता) ऐसे तीन अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया।
- 1892 मे इंग्लंड मे के ‘फिन्सबरी’ मतदार संघ में से वो हाउस ऑफ कॉमन्सवर चुनकर आये थे। ब्रिटिश संसद के पहले हिंदू सदस्य बनने का सम्मान उनको मिला।
- 1906 मे कोलकाता यहा अधिवेशन था। तब दादाभाई नौरोजी उसके अध्यक्ष थे उस अधिवेशन मे स्वराज्य की मांग की गयी। उस मांग को दादाभाई नौरोजीने समर्थन दिया।
- ब्रिटिश राज्यकर्ता ने भारत की बहोत आर्थिक लुट कर रहे थे। ये दादाभाई ने ‘लुट का सिध्दांत’ या ‘नि:सारण सिध्दांत’ से स्पष्ट किया।
ग्रंथ संपत्ती – पावर्टी और अन ब्रिटिश रुल इन इंडिया।
विशेषता –
- भारत के पितामह।
- भारतीय अर्थशास्त्र के जनक।
- आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक।
- रॉयल कमीशन के पहले भारतीय सदस्य।
मृत्यु – 30 जून, 1917 को दादाभाई नौरोजीका देहांत हुवा।
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