गोपाल गणेश आगरकर | Gopal Ganesh Agarkar Biography-
Gopal Ganesh Agarkar – गोपाल गणेश आगरकर का सामाजिक जीवन के 15 सालो में, समाज सुधारने, शिक्षा का महत्त्व बढाने और महाराष्ट्र में सामाजिक जीवन का विकास करने में सबसे बड़ा योगदान रहा. आज इस लेख में गोपाल गणेश आगरकर जी के बारे में पढ़ते हैं.
गोपाल गणेश आगरकर – Gopal Ganesh Agarkar Biography in Hindi
पूरा नाम – गोपाल गणेश आगरकर
जन्म – 14 जूलाई 1856
मृत्यु – 17 जून 1895 को उनका देहांत हुआ
जन्मस्थान – टेंभू (कराड के पास, जि. सातारा)
पिता – गणेशराव आगरकर
माता – सरस्वती आगरकर
शिक्षा – 1875 में मॅट्रिक परिक्षा उत्तीर्ण. 1878 में B.A. की परिक्षा उत्तीर्ण. 1880 में M.A. की उपाधि उन्होंने संपादन की
विवाह – यशोदा के साथ (1877 में)
पुस्तकें – विकार विलसित, डोंगरी के जेल के 101 दिन आदी
जन्म – 14 जूलाई 1856
मृत्यु – 17 जून 1895 को उनका देहांत हुआ
जन्मस्थान – टेंभू (कराड के पास, जि. सातारा)
पिता – गणेशराव आगरकर
माता – सरस्वती आगरकर
शिक्षा – 1875 में मॅट्रिक परिक्षा उत्तीर्ण. 1878 में B.A. की परिक्षा उत्तीर्ण. 1880 में M.A. की उपाधि उन्होंने संपादन की
विवाह – यशोदा के साथ (1877 में)
पुस्तकें – विकार विलसित, डोंगरी के जेल के 101 दिन आदी
गोपाल गणेश आगरकर / Gopal Ganesh Agarkar का जन्म 14 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के सातारा जिले के कराड तहसील के टेम्भु ग्राम में एक कोकनस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ. उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा कराड (तीसरी तक, इंग्लिश मीडियम में) ग्रहण की, और कुछ समय तक कोर्ट में क्लर्क का काम भी किया.
1878 में उन्होंने B.A की डिग्री ली और 1880 में M.A की परीक्षा दी. फिर बाद में अपना समस्त जीवन सामाजिक सेवा में व्यतीत किया.
गोपाल गणेश आगरकर ब्रिटिश राज में चित्पावन ब्राह्मण समाज सुधारक, शिक्षाविशारद, भारत में महाराष्ट्र के श्रेष्ट विचारक थे. वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सहयोगी थे, उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थाओ के निर्माण जैसे न्यू इंग्लिश स्कूल, द डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी और फेर्गुशन कॉलेज की स्थापना करने में तिलक, विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, महादेव बल्लाल नामजोशी, व्ही.एस. आप्टे, व्ही.बी. केलकर, एम.एस. गोले और एन.के धराप की बहोत मदद की.
उस समय के साप्ताहिक पत्रिका केसरी के वे पहले संपादक और संस्थापक और नियतकालिन पत्रिका के सुधारक थे. फर्गुसन महाविद्यालय के वे दूसरे प्रधानाचार्य थे और अगस्त 1892 से अपनी मृत्यु तक उस पद पे रहते हुए वहा सेवा की.
केवल 39 साल तक जीवित रहने के बावजूद उनका जीवन हमारे लिए पूर्ण रूप से एक उच्च नैतिकता, लक्ष्य को पाने के लिए पक्का इरादा, बलिदान, अपार साहस और 1% भी लालची न होने के चरित्र का उदाहरण है. जो भी व्यक्ति अपने जीवन में सामाजिक कार्य करना चाहे तो ऐसे लोगो के लिए वे एक आदर्श है. हम उनके तत्वों को अपनाकर आसानी से सामाजिक हितो के लिए काम कर सकते है.
एक नजर में गोपाल गणेश आगरकर जी के कार्य – Gopal Ganesh Agarkar History in Hindi
- 1880 में विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, तिलक और आगरकर इन्होंने पूणा में न्यु इंग्लिश स्कूल की स्थापना की.
- 1881 में तिलक और आगरकर इन्होंने मराठी भाषा में ‘केसरी’ और अंग्रेजी भाषामे ‘मराठा’ ये साप्ताहिक शुरु किये. ‘केसरी’ के संपादन पद की जिम्मेदारी आगरकर पर आयी.
- दिन बदिन साप्ताहिक अधिकाधिक लोकप्रिय होने लगे. उसी में से कोल्हापूर के दिवाण बर्वे इनके गलत कारोबार पर टिका की, उस वजह से उनके उपर बर्वे इन्होंने मानहानी का मामला दर्ज करवाया. उसमे बर्वे की जीत हुयी. और तिलक – आगरकर को 1882 में 101 दिन की जेल हुयी. उन्हें बम्बई को डोंगरी के जेल में रखा. इस समय में आगरकर ने शेक्सपियर के ‘हॅम्लेट’ इस नाटक का ‘विकार विलसित’ इस नाम से मराठी अनुवाद किया वैसेही जेल मे जो अनुभव आये, उसका विवरण करनेवाला ‘डोंगरी के जेल मे के हमारे 101 दिन’ इन नाम की छोटीसी किताब उन्होंने जेल से छूटने बाद लिखी.
- 1884 मे तिलक – आगरकर ने पूणा के डेक्कन एज्युकेशन सोसायटी की स्थापना की. वैसे ही 1885 मे इस संस्था के तरफ से पूणा मे ही फर्ग्युसन कॉलेज खोला गया.
- केसरी और मराठा साप्ताहिक में से तिलक ये सामाजिक जागृती को ज्यादा एहमियत देने लगे. आगरकर ने सामाजिक सुधारना को प्राधान्य देणे का निर्णय लिया था. उस वजह से 1887 मे उन्होंने केसरी के संपादन पद का इस्तीफा दिया.
- 1888 में उन्होंने ‘सुधारक’ नाम का अपना स्वतंत्र साप्ताहिक शुरु किया. ‘सुधारक’ मराठी और अंग्रेजी इन दोनों भाषा मे प्रसिद्ध किये जाते थे. उनके मराठी आवृत्ती के संपादन की जिम्मेदारी आगरकर ने और अंग्रेजी आवृत्ती के संपादन की जिम्मेदारी गोपाल कृष्ण गोखले इन्होंने संभाली थी. ‘सुधारक’ साप्ताहिक मे से अपने समाज सुधारणा के विचार उन्होंने बड़े लढाउ भाषा मे रखे.
- आगे फर्ग्युसन कॉलेज के पहले प्राचार्य वा. शि. आपटे इनकी 1892 मे अचानक मौत हुयी. उसके बाद आगरकर की प्राचार्य के रूप मे नियुक्त किया गया. आखीर तक वो उस स्थान पर थे.
- आगरकर ने भारतीय समाज मे के बालविवाह, मुंडन, नस्लीय भेदभाव, अस्पृश्यता इन जैसे बहोत अनिष्ट परंपरा और रुढ़ी का विरोध किया था.
- वांछनीय होगा वो बोलुंगा और पूरा होंगा वही करूंगा” ये उनका आदर्श वाक्य था.
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