Lokmanya Tilak Biography – लोकमान्य तिलक का जीवन परिचय-
Lokmanya Tilak Biography
बाल गंगाधर तिलक उर्फ़ लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak) जिनका जन्म केशव गंगाधर तिलक के नाम से हुआ था। वे भारतीय क्रन्तिकारी, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्त्ता, वकील और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के पहले नेता थे। ब्रिटिश अधिकारी उन्हें “भारतीय अशांति के जनक” मानते थे। इसी वजह से उन्हें “लोकमान्य” का सम्मान भी दिया गया, जिसका साधारणतः अर्थ “लोगो द्वारा स्वीकार किया हुआ (एक नेता की तरह)” होता है।
लोकमान्य तिलक “स्वराज” के पहले और सबसे मजबूत नेता (वकील) थे। लोकमान्य तिलक उनके एक कहावत के लिये काफी जाने जाते है। –
“स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और में इसे लेकर ही रहूँगा।”
Lokmanya Tilak Biography – लोकमान्य तिलक का जीवन परिचय
पूरा नाम – बाल ( केशव ) गंगाधर तिलक
जन्मदिन – 23 जुलाई 1856
जन्मस्थान – चिखलगाँव, ता. दापोली, जि. रत्नागिरी
पिता – गंगाधरपंत
माता – पार्वतीबाई
शिक्षा – 1876 में बी.ए. (गणित) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण & 1879 में एल. एल. बी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण।
विवाह – सत्यभामाबाई के साथ।
लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी के चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पूर्वजो का ग्राम चिखली था। उनके पिता गंगाधर तिलक एक स्कूल शिक्षक और संस्कृत के विद्वान थे। जब तिलक केवल 16 साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी।जन्मदिन – 23 जुलाई 1856
जन्मस्थान – चिखलगाँव, ता. दापोली, जि. रत्नागिरी
पिता – गंगाधरपंत
माता – पार्वतीबाई
शिक्षा – 1876 में बी.ए. (गणित) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण & 1879 में एल. एल. बी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण।
विवाह – सत्यभामाबाई के साथ।
1877 में पुणे के डेक्कन महाविद्यालय से तिलक ग्रेजुएट हुए। Lokmanya Tilak उन लोगो में से थे जिन्होंने उस समय प्रथमतः महाविद्यालयीन शिक्षा प्राप्त की थी।
1871 में लोकमान्य तिलक का तापिबाई से विवाह हुआ (महिला जो बाल परिवार से संबंध रखती थी), उस समय वे केवल 16 साल के थे औरउनके पिता को गुजरे कुछ ही महीने हुए थे। शादी के बाद तिलक की पत्नी का नाम बदलकर सत्याभामाबाई रखा गया। तिलक ने अपनी मेट्रिक 1872 में पूरी की।
1877 में पुणे के डेक्कन महाविद्यालय से उन्होंने गणित में आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। 1879 में उन्होंने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से LLB की उपाधि प्राप्त की। लेकिन दो बार कोशिश करने के बाद भी वे MA में सफल नहीं हो पाए।
ग्रेजुएट होने के बाद पुणे की एक प्राइवेट स्कूल में तिलक गणित पढ़ाने लगे। लेकिन बाद में वे एक पत्रकार बने। जहा लोकमान्य तिलक सभी सामाजिक गतिविधियों में शामिल होते। उन्होंने बताया की,
“धार्मिक और वास्तविक जीवन अलग-अलग नहीं है। केवल सन्यास लेना ही जीवन का मुख्य हेतु नहीं है। जीवन का असली आनंद अपने देश को अपना परिवार समझकर उसके लिए कम करने में है ना की केवल खुद के लिए काम करने में है। पहले हमें मानवता की पूजा करनी चाहिये तभी भगवान् की पूजा करने के काबिल हम बन पाएंगे।”
लोकमान्य तिलक ने अपने कुछ महाविद्यालयीन मित्र महादेव बल्लाल नामजोशी, गोपाल गणेश अगरकर और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर के साथ मिलकर डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की।
उस समय उनका मुख्य उद्देश भारत में शिक्षा को बढ़ावा देना था। डेक्कन एजुकेशन सोसिर्टी का मुख्य उद्देश भारतीय युवायो को एक नयी प्रेरणाशक्ति प्रदान करना था। ताकि वे भारतीय परम्पराओ को जान सके और उन्हें शिक्षित बना सके।
बाद में इसी सोसाइटी ने उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए न्यू इंग्लिश स्कूल की और पोस्ट-सेकेंडरी शिक्षा के लिए 1885 में फेर्गुसन कॉलेज की स्थापना की। जहा फेर्गुसन कॉलेज में लोकमान्य तिलक गणित पढ़ाने लगे। उन्होंने अपना क्रन्तिकारी आन्दोलन युवायो में आज़ादी के बिज बोकर शुरू किया।
लोकमान्य तिलक का राजनैतिक जीवन – Lokmanya Tilak political career
लोकमान्य तिलक का राजनैतिक जीवन बहोत मजबूत और लम्बा रहा। वे भारत में स्वायत्तता निर्माण करना चाहते थे और ब्रिटिश कानून को खत्म करना चाहते थे। महात्मा गांधी जी से पहले, वे भारतीय इतिहास के सबसे बड़े राजनैतिक नेता माने जाते थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के कई नेताओ के साथ घनिष्ट संबंध बना रखे थे जिनमे बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, औरोबिन्दो घोष और मुहम्मद अली जिन्नाह भी शामिल थे।
लोकमान्य तिलक का महाराष्ट्रियन लोगो से ज्यादा संबंध था। इसीलिए उनके हरेक भाषण का महाराष्ट्र पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता था। और एक स्थिति ऐसी आ गयी थी जहा ब्रिटिश अधिकारी उन्हें “भारतीय अशांति/क्रांति के जनक” के नाम से बुलाने लगे। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी उन्होंने लड़ना नहीं छोड़ा और अन्य नेताओ की तरह ही लोगो को प्रेरित करते रहे।
एक नजर में लोकमान्य तिलक के मुख्य कार्य – Lokmanya Tilak Works Information
- 1880 में पुणे में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना।
- 1881 में जनजागरण के लिए ‘केसरी’ मराठी और ‘मराठा’ इंग्रेजी ऐसे दो अखबारों की शुरुवात की। आगरकर केसरी के और तिलक मराठा के संपादक बने।
- 1884 में पुणे में डेक्कन एज्युकेशन सोसायटी की स्थापना।
- 1885 में पुणे में फर्ग्युसन कॉलेज शुरू किया गया।
- 1893 में ‘ओरायन’ नाम के किताब का प्रकाशन।
- लोकमान्य तिलक ने लोगों मे एकता की भावना निर्माण करने के लिए ‘सार्वजानिक गणेश उत्सव’ और ‘शिव जयंती उत्सव’ शुरू किया।
- 1895 में मुम्बई प्रांतीय विनियमन बोर्ड के सभासद इसलिए चुना गया।
- 1897 में लोकमान्य तिलक पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें डेढ़ साल की सजा सुनाई गयी। उस समय तिलक ने अपने बचाव में जो भाषण दिया था वह 4 दिन और 21 घंटे चला था।
- 1903 में ‘दि आर्क्टिक होम इन द वेदाज’ नाम के किताब का प्रकाशन।
- 1907 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत के अधिवेशन में जहाल और मवाल इन दो समूह का संघर्ष बहोत बढ़ गया था। इसका परिणाम मवाल समूह ने जहाल समूह को कांग्रेस संघटने से निकाल दिया। जहाल का नेतृत्व लोकमान्य तिलक इनके पास था।
- 1908 में तिलक इनपर राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ। उसमे उनको छः साल की सजा सुनाई गई और उन्हें ब्रम्हदेश के मंडाले के जेल में भेज दिया गया। मंडाले के जेल में उन्होंने ‘गीतारहस्य’ नाम का अमर ग्रन्थ लिखा।
- 1916 में उन्होंने डॉ. एनी बेसेंट इनके सहकार्य से ‘होमरूल लीग’ संघटना की स्थापना की। होमरूल यानि अपने राज्य का प्रशासक हम करे। जिसे ‘स्वशासन’ भी कहते है।
- हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहियें इस बात को सबसे पहले तिलक ने ही रखा था।
विशेषता:
- भारतीय अशांति के जनक।
- लाल बाल पाल इन त्रिमुर्तियो में से एक।
लोकमान्य तिलक मृत्यु: 1 अगस्त, 1920 को लोकमान्य तिलक की मुंबई में मौत हो गयी।
तिलक देश के हालत सुधारने के लिए और स्वराज्य प्राप्ति के लिए पूरा जीवन प्रयास करते रहे। लोकमान्य तिलक का नाम भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में सदा याद किया जायेंगा। बाल गंगाधर की इन चाँद पंक्तियों में ही हमे जीवन का सार दिखाई देता है,
“धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं है। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बनाकर मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम इश्वर की सेवा करना है।”
इतिहास के इस महापुरुष को कोटि-कोटि प्रणाम।।।।।।।।।NOTE:-दोस्तों पोस्ट को बनाने में घंटो लग जाते है क्या आप हमे दो मिनट्स दे सकते है तो इसको आप whatsapp or facebook पर शेयर करे और आपको इसमें कोई गलती लगे तो आप कमेंट में लिखे तो हम इसको जल्दी से जल्दी अपडेट करने की कोशिश करेंगे
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