Lal Bahadur Shastri in Hindi | लाल बहादुर शास्त्री जीवनी-
Lal Bahadur Shastri – लाल बहादुर शास्त्री एक और महापुरुष जिसने आज़ादी की लढाई में मुख्य भूमिका निभाई और अंग्रेजो को धुल चटाई वह है। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 1904 को मुग़लसराय में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता अभियान को तीव्र गति से आगे बढ़ाने के लिये बड़े राजनेताओ के साथ मिलकर अंग्रजो को काफी परेशान किया था। उनके महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में।
पूरा नाम – लालबहादुर शारदाप्रसाद श्रीवास्तव
जन्म – 2 अक्तुबर 1904
जन्मस्थान – मोगलसराई (जि. वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
पिता – शारदा प्रसाद
माता – रामदुलारी देवी
शिक्षा – काशी विश्वविद्यालय से ‘तत्वज्ञान’ विषय लेकर ‘शास्त्री’ की उपाधि
विवाह – ललिता देवी के साथ
जन्म – 2 अक्तुबर 1904
जन्मस्थान – मोगलसराई (जि. वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
पिता – शारदा प्रसाद
माता – रामदुलारी देवी
शिक्षा – काशी विश्वविद्यालय से ‘तत्वज्ञान’ विषय लेकर ‘शास्त्री’ की उपाधि
विवाह – ललिता देवी के साथ
“कानून का सम्मान किया जाना चाहिये ताकि हमारे लोकतंत्र की बुनियादी संरचना बरक़रार रहे और मजबूत बने।”
Lal Bahadur Shastri In Hindi – लाल बहादुर शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री / Lal Bahadur Shastri का जन्म मुघलसरई, वाराणसी में लाल बहादुर श्रीवास्तव के नाम से हुआ। वे पारंपरिक रूप से एक सिविल नौकर और एक स्कूल शिक्षक थे। शास्त्री जी के पूर्वज रामनगर, वाराणसी के ही ज़मीनदार थे। शास्त्री जी के पिताजी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक स्कूल शिक्षक थे जो बाद में अल्लाहाबाद के राजस्व विभाग के कर्मचारी बने, उनकी माता रामदुलारी देवी एक गृहिणी थी। शास्त्री अपनी माता-पिता की दूसरी संतान और अपने परिवार में जन्मे पहले बेटे थे।
अप्रैल 1906 में शारदा प्रसाद का गिल्टी प्लेग से संबंध हुआ, जो उस समय एक महामारी थी। जब शास्त्री केवल 1 साल के थे तभी उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के बाद शास्त्री जी का जीवन और भी संघर्षमय हुआ। लेकिन फिर भी शास्त्री जी ने हार नहीं मानी और जीवन में आगे बढ़ते गये।
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय लोकतंत्र के प्रधानमंत्री और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के नेता भी रह चुके है। शास्त्री जी 1920 में भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शामिल हुए। जिनपर महात्मा गांधी का सबसे ज्यादा प्रभाव था। वे उनके एक सच्चे अनुयायी थे और बाद में वे जवाहरलाल नेहरु जी के भी अनुयायी बने।
1947 में स्वतंत्रता के बाद उन्होंने सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया और प्रधानमंत्री नेहरु जी के सहायक के रूप में पहले रेलवे मंत्री (1951-56) और बाद में अन्य पद जैसे गृह मंत्री के लिए भी नियुक्त किये गये। नेहरु जी की बेटी के बाद नेहरु सरकार को सहारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री ही थे।
इंदिरा से भी कई साल पहले नेहरु की विजय में लाल बहादुर शास्त्री का बहुत बड़ा सहयोग रहा है। शास्त्री के बाद ही इंदिरा गांधी ने कांग्रेस पार्टी की बागडोर अपने हातो में ली थी। और एक प्रधानमंत्री की तरह ही शास्त्री ने भी नेहरु जी की ही निति को अपनाते हुए समाजवाद को आगे बढाया।
1965 के इंडो-पाक युद्ध के समय उन्होंने भारत को आगे बढाया। इस युद्ध के समय उनका एक नारा “जय जवान, जय किसान” काफी प्रचलित हुआ और आज भी यह नारा लोगो की रग-रग में बसा हुआ है। यह युद्ध अंत में तशकेंट करार से समाप्त हुआ, और बाद में हृदय विकार की वजह से उनकी मृत्यु हो गयी। विशेषज्ञों के अनुसार किसी ने उनकी मृत्यु का षड्यंत्र रचा था।
Lal Bahadur Shastri Death – मृत्यु:
प्रधानमंत्री शास्त्री की मृत्यु तशकेंट में 2 P.M को तशकेंट करार हस्ताक्षरित होने के बाद ह्रदय विकार के कारण ११ जनवरी १९६६ को उनका मृत्यु हुआ। लेकिन लोग उनकी मृत्यु को किसी का षड्यंत्र मानते है।
लाल बहादुर शास्त्री भारत के पहले प्रधानमंत्री है जिनकी मृत्यु समुद्र पार (विदेशी सरजमी) पर हुई। उनकी याद में विजय घाट का भी निर्माण किया गया। उनकी मृत्यु के बाद गुलजारीलाल नंदा को तब तक भारत का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला जब तक की इंदिरा गांधी कांग्रेस पार्टी की बागडोर अपने हातो में नहीं ले लेती।
लाल बहादुर शास्त्री एक सत्यवादी और अहिंसा के पुजारी थे।
उनका ऐसा मानना था की,
“लोगो को सच्चा लोकतंत्र या स्वराज कभी भी असत्य और हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता।”
जीवन में कई लोग अपनी कठिन परिस्थितियों से घबराकर झूट बोलने लगते है और गलत रास्तो पर जाने लगते है। और अंत में उन्हें अपने किये पर पछतावा होने लगता है। इसीलिए हमें जीवन में किसी भी परिस्थिती में हमेशा सच का साथ देना चाहिये। लाल बहादुर शास्त्री के अनुसार, सच वाला रास्ता लम्बा जरुर हो सकता है लेकिन वही रास्ता आपको जीवनभर का आनंद दे सकता है।
सादगी, निस्स्वार्थता, शालीनता, त्याग, उदारता, दृढ़ निश्चय जैसे आदर्शवादी शब्दों की एक ही व्यक्ति में व्यावहारिक परिणति का सर्वोत्तम उदाहरण शास्त्री जी में ही देखने में आया।
एक नजर में लाल बहादुर शास्त्री की जानकारी – Lal Bahadur Shastri In Hindi
- 1920 में महात्मा गांधीजी ने शुरु किये हुये असहकार आंदोलन में लालबहादुर शास्त्रीने कॉलेज के समय हिस्सा लिया और जेल भी गये।
- 1927 में लाल बहादुर शास्त्री लोगसेवक मंडल के सदस्य बने।
- १९३० में लाल बहादुर शास्त्रीने अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। उसके वजह से ढाई साल की शिक्षा होकर जेल गये।
- लाल बहादुर शास्त्रीने अपना मिलजुल कर रहने वाली प्रवुत्ति और सीधापन इनसे लोगों को अपनासा बनाया। पक्ष में के झगड़े मिटाते थे।
- गांधीजी ने १९४२ में शुरु किये हुये ‘छोडो भारत’ स्वतंत्रता आंदोलन में भी कुछ समय भूमिगत रहकर उन्होंने आंदोलन को मार्गदर्शन किया।
- १९४६ में उत्तर प्रदेश विधिमंडल से चुनकर आकर मंत्री बने।
- १९५२ में वो पंडित नेहरु के मध्यवर्ती मंत्री मंडल में रेल्वेमंत्री बने। १९५६ में केरल राज्य में अरियालुट यह एक बहुत बड़ी रेल्वे दुर्घटना हुयी। उस दुर्घटना में १५० इन्सानों की मौत हुयी। वो घटना की बात सुनतेही शास्त्री को बहुत दुख हुवा। उनकी नैतिक जिम्मेदारी अपनाकर शास्त्रीजी ने अपने पद का इस्तीफा दिया।
- १९५७ में लोकसभा चुनाव में लाल बहादुर शास्त्रीने कॉग्रेस को जित हासिल कर के दी। वो खुद अलाहाबाद मतदान संघ में से गये और दळणवळण खाते के मंत्री बने। उस समय हुये पोस्ट खाते की हड़ताल उन्होंने ही स्वतम की आगे मंत्रिमंडल में बदल हुवा। शास्त्री को व्यापार और उद्योग खता मिला। उसमे भी उन्होंने अपना कार्य बखुभी किया।
- १९६०-६१ में गोविंद वल्लभ पंत जाने के बाद पंडित नेहरूं ने शास्त्री को गृह्मंत्रिपद की जिम्मेदारी दी।
- १९६२ में हुये चुनाव में भी वो वापीस लोकसभा में चुनकर आये और गृहमंत्री बने।
- पंडित नेहरु के जाने के बाद १९६४ में भारतीयों ने लाल बहादुर शास्त्री को पंतप्रधान बनाया।
१९६५ में शास्त्रीजी पंतप्रधान थे उस समय पाकिस्तान ने कश्मीर लेने के लिये उस पर आक्रमण किया पर इनके आदेश के अनुसार भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हरा दिया। उस समय शास्त्री ने किसानो को और जवानों को ‘जय जवान, जय किसान’ ये नारा लगाया।
युनो ने युध्द बंदी का आदेश दिया। रशिया के पंतप्रधान कोसिजिन इन्होंने शास्त्री को और आयुबखान को हिस्सों के लिये ताश्कंद को बुलाया। वहा हिस्से पर चर्चा होकर १० जनवरी १९६६ को ४ बजे शास्त्री और आयुबखान ने कोसिजिन को साक्षी रखकर करार पर दस्तखत किये। इसी को ‘ताश्कद करार’ कहते है। उसी दिन हार्ट अटॅक के जोरदार झटके से उनकी मौत हुयी।
पुरस्कार: १९६६ में मरणोत्तर ‘भारतरत्न’
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