Sunday, 17 December 2017

सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी | Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी | Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi-


Sardar Vallabhbhai Patel
सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्र भारत के उप प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने भारतीय संघ के साथ सैकड़ों रियासतों का विलय किया। सरदार वल्लभभाई पटेल वकील के रूप में हर महीने हजारों रुपये कमाते थे। लेकिन उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए अपनी वकिली छोड़ दी। किसानों के एक नेता के रूप में उन्होंने ब्रिटिश सरकार को हार को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। ऐसे बहादुरी भरे कामो के कारण ही वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष कहा जाता है।
बारडोली सत्याग्रह में अपने अमूल्य योगदान के लिये लोगो ने उन्हें सरदार की उपमा दी। सरदार पटेल एक प्रसिद्ध वकील थे लेकिन उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी भारत को आजादी दिलाने में बितायी। आजादी के बाद ही सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के उपप्रधानमंत्री बने और भारत को एक बंधन में जोड़ने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

सरदार वल्लभभाई पटेल – Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नाडियाड ग्राम, गुजरात में हुआ था। उनके पिता जव्हेरभाई पटेल एक साधारण किसान और माता लाडबाई एक गृहिणी थी। बचपन से ही वे परिश्रमी थे, बचपन से ही खेती में अपने पिता की सहायता करते थे। वल्लभभाई पटेल ने पेटलाद की एन.के. हाई स्कूल से शिक्षा ली।
स्कूल के दिनों से ही वे हुशार और विद्वान थे। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उनके पिता ने उन्हें 1896 में हाई-स्कूल परीक्षा पास करने के बाद कॉलेज भेजने का निर्णय लिया था लेकिन वल्लभभाई ने कॉलेज जाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद लगभग तीन साल तक वल्लभभाई घर पर ही थे और कठिन मेहनत करके बॅरिस्टर की उपाधी संपादन की और साथ ही में देशसेवा में कार्य करने लगे।
वल्लभभाई पटेल एक भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे, और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेताओ में से एक थे और साथ ही भारतीय गणराज्य के संस्थापक जनको में से एक थे। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये कड़ा संघर्ष किया था और उन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधने और आज़ाद बनाने का सपना देखा था।
गुजरात राज्य में वे पले बढे। पटेल ने सफलतापूर्वक वकिली का प्रशिक्षण ले रखा था। बाद में उन्होंने खेडा, बोरसद और बारडोली के किसानो को जमा किया और ब्रिटिश राज में पुलिसकर्मी द्वारा किये जा रहे जुल्मो का विरोध उन्होंने अहिंसात्मक ढंग से किया। वो हमेशा कहते थे –
“आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये।”
इस कार्य के साथ ही वे गुजरात के मुख्य स्वतंत्रता सेनानियों और राजनेताओ में से एक बन गए थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में भी अपने पद को विकसित किया था और 1934 और 1937 के चुनाव में उन्होंने एक पार्टी भी स्थापित की थी। और लगातार वे भारत छोडो आन्दोलन का प्रसार-प्रचार कर रहे थे।
भारतीय के पहले गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने पंजाब और दिल्ली से आये शरणार्थियो के लिये देश में शांति का माहोल विकसित किया था। इसके बाद पटेल ने एक भारत के कार्य को अपने हाथो में लिया था और वो था देश को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाना।
भारतीय स्वतंत्रता एक्ट 1947 के तहत पटेल देश के सभी राज्यों की स्थिति को आर्थिक और दर्शनिक रूप से मजबूत बनाना चाहते थे। वे देश की सैन्य शक्ति और जन शक्ति दोनों को विकसित कर देश को एकता के सूत्र में बांधना चाहते थे।
पटेल के अनुसार आज़ाद भारत बिल्कुल नया और सुंदर होना चाहिए। अपने असंख्य योगदान की बदौलत ही देश की जनता ने उन्हें “आयरन मैन ऑफ़ इंडिया – लोह पुरुष” की उपाधि दी थी। इसके साथ ही उन्हें “भारतीय सिविल सर्वेंट के संरक्षक’ भी कहा जाता है। कहा जाता है की उन्होंने ही आधुनिक भारत के सर्विस-सिस्टम की स्थापना की थी।
सरदार वल्लभभाई पटेल एक ऐसा नाम एवं ऐसे व्यक्तित्व है जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के बाद कई भारतीय युवा प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। लेकिन अंग्रेजो की निति, महात्मा गांधी जी के निर्णय के कारण देशवासियों का यह सपना पूरा नही हो सका था। आज़ादी के समय में एक शूरवीर की तरह सरदार पटेल की ख्याति थी। सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन से यह बात तो स्पष्ट हो गयी थी की इंसान महान बनकर पैदा नही होता।
उनके प्रारंभिक जीवन को जानकर हम कह सकते है की सरदार पटेल हम जैसे ही एक साधारण इंसान ही थे जो रुपये, पैसे और सुरक्षित भविष्य की चाह रहते हो। लेकिन देशसेवा में लगने के बाद धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बेरिस्टर वल्लभभाई पटेल कब सरदार पटेल और लौह पुरुष वल्लभभाई पटेल बन गए पता ही नही चला।
सरदार पटेल ने राष्ट्रिय एकता का एक ऐसा स्वरुप दिखाया था जिसके बारे में उस समय में कोई सोच भी नही सकता था। उनके इन्ही कार्यो के कारण उनके जन्मदिन को राष्ट्रिय स्मृति दिवस को राष्ट्रिय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन को भारत सरकार ने 2014 से मनाना शुरू किया था, हर साल 31 अक्टूबर को राष्ट्रिय एकता दिवस मनाया जाता है।

एक नजर में सरदार वल्लभभाई पटेल – Sardar Vallabhbhai Patel information

1) 1913 मे लंडन से बॅरिस्टरकी उपाधी संपादन करके भारत लौटे।
2) 1916 मे लखनऊ मे राष्ट्रीय कॉग्रेस के अधिवेशन मे वल्लभभाई ने गुजरात का प्रतिनिधित्व किया।
3) 1917 में वो अहमदाबाद नगरपालिका मे चुनकर आये।
4) 1917 मे खेडा सत्याग्रह मे उन्होंने हिस्सा लिया, साराबंदी आंदोलन का नेतृत्त्व उन्होंने किया, आखीरकार सरकार को झुकनाही पडा, सभी टेक्स वापीस लिये, सरदार इनके नेतृत्त्व मे हुये इस आंदोलन को विजय प्राप्त हुयी, 1918 के जून महीने मे किसनोंने विजयोस्तव मनाया उस समय गांधीजीको बुलाके वल्लभभाई को मानपत्र दिया गया।
5) 1919 को रौलेट अॅक्ट के विरोध के लिये वल्लभभाई अहमदाबाद मे बहोत बडा मोर्चा निकाला।
6) 1920 मे गांधीजी ने असहकार आंदोलन शुरु किया, इस असहकार आंदोलन मे वल्लभभाई अपना पूरा जीवन देश को अर्पण किया, महीने को हजारो रुपये मिलनेवाली वकीली उन्होंने छोड़ दी।
7) 1921 मे गुजरात प्रांतीय कॉग्रेस कमिटी के अध्यक्ष स्थान पर उनको चुना गया।
8) 1923 मे अग्रेंज सरकार ने तिरंगा पर बंदी का कानून किया, अलगअलग जगह से हजारो सत्याग्रही नागपूर को इकठठा हुये, साडेतीन महीने पुरे जोश के साथ वो लढाई शुरु हुयी, सरकारने इस लढाई को दबाने के लिये नामुमकीन कोशिश की।
9) 1928 को बार्डोली को वल्लभभाईने अपने नेतृत्त्व मे किसानो के लिये साराबंदी आंदोलन शुरु किया, पहले वल्लभभाई ने सरकार को सारा कम करने का निवेदन किया, लेकीन सरकार ने उनकी तरफ अनदेखा किया, योजना के साथ और सावधानी से आंदोलन शुरु किया, आंदोलन को दबानेका सरकारने नामुमकीन कोशिश की, लेकिन इसी समय बम्बई विधानसभा के कुछ सदस्योंने अपने स्थान का इस्तिफा दिया। इसका परिणाम सरकारने किसानो की मांगे सशर्त मान ली, बार्डोली किसानो ने वल्लभभाई को ‘सरदार’ ये बहुमान दिया।
10) 1931 मे कराची मे हुये राष्ट्रीय कॉग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष स्थान पर वल्लभभाई थे।
11) 1942 मे ‘भारत छोडो’ आंदोलन मे हिस्सा लेने के वजह से उन्हें जेल जाना पडा।
12) 1946 को स्थापन हुये मध्यवर्ती अभिनय मंत्रिमंडल मे वो गृहमंत्री थे, वो घटना समिती के सदस्य भी थे।
13) 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुवा, स्वतंत्रता के बाद पहले मंत्रिमंडल मे उपपंतप्रधान का स्थान उन्हे मिला, उनके पास गृह जानकारी और प्रसारण वैसेही घटक राज्य संबधीत सवाल ये खाती दी गयी।
वल्लभभाई ने स्वतंत्रता के बाद करिबन छे सो संस्थान का भारत मे विलिकरण किया, हैद्राबाद संस्थान भी उनके पूलिस अॅक्शन की वजह से 17 सितंबर 1948 को भारत मे विलीन हुवा।

सरदार वल्लभभाई पटेल को मिले हुए पुरस्कार – Sardar Vallabhbhai Patel Awards

  • नागपूर विश्वविद्यालय, बनारस हिंदु विश्वविद्यालय और उस्मानिया विश्वविद्यालय आदी विश्वविद्यालय के तरफ से ‘डी लिट’ ये सन्मान की उपाधि।
  • 1991 मे मरणोत्तर ‘भारतरत्न’।
मृत्यु: 15 दिसंबर 1950 को उनका निधन हुवा। सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु के बाद भारत ने अपना नेता खो दिया। सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे दूसरे नेता को ढूंढना मुश्किल होगा, जिन्होंने आधुनिक भारत के इतिहास में इतनी सारी भूमिकाएं निभायीं। सरदार पटेल एक महान व्यक्ति थे, प्रदर्शन में महान, व्यक्तित्व में महान – आधुनिक भारत के इतिहास में रचनात्मक राजनीतिक नेता थे। इस महान नेता सरदार वल्लभभाई पटेल को हमारी टीम नमन करती हैं!
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Albert Einstein Biography In Hindi | अल्बर्ट आइंस्टीन जीवनी

Albert Einstein Biography In Hindi | अल्बर्ट आइंस्टीन जीवनी-


मानव इतिहास के जाने-माने बुद्धिजीवी अल्बर्ट आइंस्टीन – Albert Einstein 20 वीं सदि के प्रारंभिक बीस वर्षों तक विश्व के विज्ञान जगत पर छाए रहे। अपनी खोजों के आधार पर उन्होंने अंतरिक्ष, समय और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतदिये। आईये पढ़ते है इस महान वैज्ञानिक के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बाते।
पूरा नाम     – अल्बर्ट हेर्मन्न आइंस्टीन
जन्म         – 14 मार्च 1879
जन्मस्थान  – उल्मा (जर्मनी)
पिता         – हेर्मन्न आइंस्टीन
माता         – पौलिन कोच
शिक्षा        – स्विट्जरलैड में उन्होंने अपनी शिक्षा प्रारंभ  की।, ज्युरिच के पॉलिटेक्निकल अकादमी में चार साल बिताये।, 1900 में स्तानक की उपाधि ग्रहण कर स्वीटजरलैड का नागरिकता का स्वीकार कर ली।, 1905 में आइंस्टीन ने ज्युरिंच विश्वविद्यालय से P.H.D. की उपाधि प्राप्त की।
विवाह       –  दो बार (मरिअक के साथ). दूसरा एलिसा लोवेंन थाल।

अल्बर्ट आइंस्टीन जीवनी | Albert Einstein Biography in Hindi

1905 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने वैज्ञानिक शोधों के आधार पर लेख प्रकाशित किये और प्रसिद्ध सापेक्षता के सिध्दान्त (Theories of Relativety) दिये। अपने इस काम के कारण अल्बर्ट आइंस्टीन / Albert Einstein नाम संपूर्ण युरोप के भौतिकी वैज्ञानिकों में फ़ैल गया।
आइंस्टीन अब पहले स्विट्जरलैंड, फिर प्राग के जर्मनी विश्वविद्यालय और सन 1912 में ज्युरिच के पॉलीटेकनिक में प्रोफेसर हो गये थे। सन 1914 में उन्होंने बर्लिन स्थित प्रुसियन अकादमी ऑफ़ साइंस में नियुक्ति ले ली थी।
Albert Einstein को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति नवम्बर, 1919 में मिली जब रॉयल सोसायटी ऑफ़ लंदन ने उनके सिद्धांतो को मान्यता प्रदान की। इसके बाद सन 1921 तक सारे युरोप में घूम कर अपने विचार बुद्धिजीवियों के सामने रखे। अगले तीन वर्ष उन्होंने विश्व भ्रमण किया और अपने सिद्धांतो से लोगोंको अवगत कराया।
1921 में आइन्स्टीन को भौतिक के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन 1933 में आइंस्टीन ने जर्मनी की नागरिकता छोड़ दी। वे बाद में प्रिंसंटन (अमेरिका) में रहने लगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा / Albert Einstein Early Life And Education

अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 में जर्मनी में वुतटेमबर्ग के यहूदी परिवार में हुआ। उनके पिता हरमन आइंस्टीन एक इंजिनियर और सेल्समन थे जबकि उनकी माता पोलिन आइंस्टीन थी।
1880 में, उनका परिवार म्यूनिख शहर चला गया जहा उनके पिता और चाचा ने Elektrotechnische Fabrik J. Einstein & Co. नामक कंपनी खोली। कंपनी बिजली के उपकरण बनाती थी और इसने म्यूनिख के Oktoberfest मेले में पहली बार रौशनी का इंतजाम भी किया था।
Albert Einstein परिवार यहूदी धार्मिक परम्पराओ को नहीं मानता था और इसीलिए आइंस्टीन कैथोलिक विद्यालय में पढने के लिए गये। लेकिन बाद में 8 साल की उम्र में वे वहा से स्थानांतरित होकर लुइटपोल्ड जिम्नेजियम (जिसे आज अल्बर्ट आइंस्टीन जिम्नेजियम के नाम से जाना जाता है) गये, जहा उन्होंने माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की, वे वहा अगले 7 सालो तक रहे, जब तक उन्होंने जर्मनी नहीं छोड़ी।
1894 में, उनके पिता की कंपनी असफल हुई : जिसमे डायरेक्ट करंट (DC) ने अल्टरनींग करंट (AC) छोड़ना बंद कर दिया था। और एक व्यापार की तलाश में, आइंस्टीन का परिवार इटली चला गया। इटली में वे पहले मिलन में रहने लगे और फिर बाद में पाविया गये।
जब उनका परिवार में पाविया में रह रहा, तब आइंस्टीन मूनिच में ही अपनी पढाई पूरी कर रहे थे। उनके पिता आइंस्टीन को एक इलेक्ट्रिकल इंजिनियर बनाना चाहते थे, लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन / Albert Einstein को वे जिस स्कूल में पढ़ रहे थे वहा की पढ़ाने की प्रणाली बिलकुल भी पसंद नहीं थी। इसलिए बाद में उन्होंने खुद ही रचनात्मक सुविचारो को लिखना शुरू किया।
दिसम्बर 1894 के अंत में, अपने पाविया के परिवार में शामिल होने के लिए उन्होंने इटली की यात्रा करना प्रारंभ किया। उन्होंने झूट बोलकर अपनी स्कूल में डॉक्टर की चिट्ठी दिखाकर छुट्टी ले रखी थी। इटली की यात्रा करते समय उन्होंने “State of Ether in a Magnetic Field” की खोज पर एक छोटा सा निबंध लिखा।
1895 में इंस्टें ने 16 साल की उम्र में स्विस फ़ेडरल पॉलिटेक्निक, जुरिच की एंट्रेंस परीक्षा दी, जो बाद में Edigenossische Technische Hochschule (ETH) के नाम से जानी जाती थी।
भौतिकी और गणित के विषय को छोड़कर बाकी दुसरे विषयो में वे पर्याप्त मार्क्स पाने में असफल हुए। और अंत में पॉलिटेक्निक के प्रधानाध्यापक की सलाह पर वे आर्गोवियन कैनटोनल स्कूल, आरु, स्विट्ज़रलैंड गये। 1895-96 में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा उन्होंने वही से पूरी की।
जब वे अपने परिवार के साथ कुछ दिनों तक रह रहे थे तभी उन्हें विन्टेलेर की बेटी मैरी से प्रेम हुआ। जनवरी 1896 में उनके पिता के आदेश पर उन्होंने फिर से जर्मन नागरिकता स्वीकार की।
सितम्बर 1896 में, उन्होंने स्विस की परीक्षा पास की और इस समय उन्हें अच्छे ग्रेड मिले थे, जिनमे भौतिकी और गणित में वे टॉप 6 में से एक थे। फिर जुरिच पॉलिटेक्निक में उन्होंने 4 साल का गणित और भौतिकी का डिप्लोमा पूरा किया। जहा मैरी विन्टेलेर ओल्सबर्ग, स्विट्ज़रलैंड चली गयी।
अल्बर्ट आइंस्टीन की भविष्य की पत्नी मीलेवा मारीक (Mileva Maric) ने भी उसी साल पॉलिटेक्निक में एडमिशन ले रखा था। गणित और भौतिकिशास्त्र के 6 विद्यार्थियों में से वो अकेली महिला थी। और कुछ ही सालो में मारिक और आइंस्टीन की दोस्ती, प्यार में बदल गयी। बाद में वे लम्बे समय तक साथ में रहने लगे, साथ में पढने लगे और आइंस्टीन को भी उनमे बहोत दिलचस्पी आने लगी थी।
1900 में, आइंस्टीन को जुरिच पॉलिटेक्निक डिप्लोमा से पुरस्कृत किया गया लेकिन मारिक को गणित में कम ग्रेड होने की वजह से वह फेल हो गयी। ऐसा कहा जाता है की मारिक ने परीक्षा के दौरान आइंस्टीन की असंवेधानिक तरीके से सहायता की थी, लेकिन इसके कोई सबूत हमें इतिहास में नहीं दिखाई देते है।
कहा जाता है की अच्छी संगती और अच्छे विचार इंसान की प्रगति का द्वार खोल देते है। ये दोनों ही हमारे जीवन में बहोत मायने रखते है। अल्बर्ट आइंस्टीन / Albert Einstein का हमेशा से यही मानना था की हम चाहे कोई छोटा काम ही क्यू ना कर रहे हो, हमें उस काम को पूरी सच्चाई और प्रमाणिकता के साथ करना चाहिये। तबी हम एक बुद्धिमान व्यक्ति बन सकते है।

अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे मै रोचक तथ्य – Albert Einstein Brain interesting facts

  1. अल्बर्ट आइंस्टीन अपने दिमाग में ही शोध का विजुअल प्रयोग कर खाका तैयार कर लेते थे। यह उनके लेबोरेट्री प्रयोग से ज्यादा सटीक होता था।
  2. एक पैथोलॉजिस्ट ने आइंन्स्टीन के शव परीक्षण के दौरान उनका दिमाग चुरा लिया था। उसके बाद वह 20-22 साल तक एक जार में बंद रहा।
अल्बर्ट आइंस्टीन सुविचार – Albert Einstein Quotes
Quote – दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य कि मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।
Quote – जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की।
Quote – ईश्वर के सामने हम सभी एक बराबर ही बुद्धिमान हैं-और एक बराबर ही मूर्ख भी।
Albert Einstein Awards :
  • भौतिका नोबेल पुरस्कार (1921)
  • Matteucci medal (1921)
  • Copley medal (1925)
  • Max planck medal (1929)
  • Time person of the century (1999)
Albert Einstein Death: 18 अप्रैल, 1955 को उनकी मृत्यु प्रिंसटन अस्पताल में हुई।
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Abraham Lincoln Biography In Hindi | अब्राहम लिंकन जीवनी

Abraham Lincoln Biography In Hindi | अब्राहम लिंकन जीवनी-

अब्राहम लिंकन जीवनी – Abraham Lincoln Biography In Hindi

पूरा नाम      – अब्राहम थॉमस लिंकन.
जन्म           – 12 फरवरी, 1809.
जन्मस्थान  – केंटुकी (अमेरिका).
पिता           – थॉमस लिंकन.
माता          – नेन्सी
शिक्षा          – *निर्धनता की वजह से अधिक शिक्षा प्राप्त न कर सके. *धीरे – धीरे उन्होंने कानुन की शिक्षा प्राप्त कर वकालत पास की.
विवाह         – मेरी टॉड के साथ (1842 मे).
Abraham Lincoln – अब्राहम लिंकन ने 1832 मे वकालत शुरु की. वकालत के साथ साथ उन्होंने राजकारण मे रुची लेने मे शुरवात की. 1832, 1840 मे इलिनॉईस राज्य के प्रतिनिधी स्थान पर वो चुनकर आये. आगे 1847 – 49 इस समय मे उन्होंने अमेरिकन कॉंग्रेस मे काम किया. लेकीन उसके बाद उन्होंने फिर से अमेरिकन कॉग्रेस के चुनाव मे हिस्सा नही लिया. पर नसीब को ये मंजूर नहीं था धीरे-धीरे अब्राहम लिंकन वापीस राजनीती मे खीचे चले गये. इसके पीछे दो महत्वपूर्ण घटनाये थी.एक वाड्मयीन और दुसरी राजकीय.
1840 के आसपास गुलामगिरी का समर्थन करनेवाले और गुलामगिरी का धिक्कार करनेवाले राज्य. ऐसा साफ विभाजन अमेरिका मे होने लगा था. कान्यासनेस्ब्रास्का कानून के अनुसार इन राज्यो के लोगोंको गुलाम रखनेकी छुट मिलने वाली थी. इसके वजह से अब्राहम लिंकन इनकी निंद उड गयी. इस कानुन के खिलाफ उन्होंने बहोत से भाषण किये. इसी दरम्यान लिंकन इनको खुद के सामर्थ्य का अंदाज आया और उसके बाद लिंकन इन्होंने राजनीती मे कभी भी पीछे मुडकर नहीं देखा.
1860 को हुयी राष्ट्राध्यक्ष का चुनाव इस संदर्भ मे महत्त्वपूर्ण रहा. फरवरी, 1861 को मतलब अब्राहम लिंकन इन्होंने राष्ट्राध्यक्ष पद के सुत्र स्वीकार करने के ग्यारह राज्योंने संघराज्य से बाहर निकलने की घोषणा की. 8 फरवरी 1861 की अलाबामा राज्य के मॉटेगोमोरी इस जगह ‘द कॉनफिडरेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका’ ये स्वतंत्र संघराज्य अस्तित्व मे आनेका घोषीत किया. लिंकन इनके जैसे नव निर्वाचित राष्ट्राध्यक्ष के आगे इन घटनाओं से अगल ही चुनौती निर्माण हुयी.
लिंकन इन्होंने 1 जनवरी 1863 को एक हुकुम व्दारा गुलामगिरी नष्ट की और दो साल बाद मतलब 31 जनवरी 1865 को तेरावी घटना ठिक करके इस आदेश को घटना मे स्थान दिया.यादवी जंग का अब्राहम लिंकन के तरफ झुक रहा था और उनका समय 1864 मे खतम होने वाला था. उन्होंने फिरसे चुनाव लढवाने की का निर्णय लिया और वो 8 नवंबर 1865 को आसानी से चुनकर आये. तब तक यादवी जंग आखरी मोड पर आ चुकी थी.
4 मार्च 1865 को अब्राहम लिंकन इनका दुसरी बार शपथ समारोह हुवा. शपथ समारोह होने के बाद लिंकन इन्होंने किया होवा भाषण बहोत मशहूर हुवा. उस भाषण से बहोत लोगोके आख मे आसु आ गये. 9 अप्रैल 1865 को बंडखोर के सैन्य का जनरल ली इसने शरण आकर यादवी जंग खतम किया. फिर भी दक्षिण राज्यो के युवकों के मन मे लिंकन इनके लिये गुस्सा था. 14 अप्रैल 1865 को वॉशिंग्टन के एक नाट्यशाला मे नाटक देख रहे थे तभी ज़ॉन विल्किज बुथ नाम के युवक ने उनको गोली मारी. इस घटना के बाद दुसरे दिन मतलब 15 अप्रैल के सुबह अब्राहम लिंकन / Abraham Lincoln की मौत हुयी.
अब्राहम लिंकन संयुक्त राज्य अमेरिका के ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने देश और समाज की भलाई के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया.
मृत्यु   –  15 अप्रैल 1865 को उनकी मौत हुयी.
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पंडित जवाहरलाल नेहरु जीवनी | Jawaharlal Nehru in Hindi

पंडित जवाहरलाल नेहरु जीवनी | Jawaharlal Nehru in Hindi-

आज़ादी के लिये लड़ने वाले और संघर्ष करने वाले मुख्य महापुरुषों में से जवाहरलाल नेहरु एक थे, वे पंडित जवाहरलाल नेहरु – Pandit Jawaharlal Nehru के नाम से जाने जाते थे, जिन्होंने अपने भाषणों से लोगो का दिल जीत लिया था। इसी वजह से वे आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री भी बने और बाद में उनकी महानता को उनकी बेटी और पोते ने आगे बढाया। इस महान महापुरुष के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी :

जवाहरलाल नेहरु जीवनी – Jawaharlal Nehru in Hindi

पूरा नाम – जवाहरलाल मोतीलाल नेहरु
जन्म      – 14 नवम्बर 1889
जन्मस्थान – इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
पिता      – मोतीलाल नेहरु
माता      – स्वरूपरानी नेहरु
शिक्षा     – 1910 में केब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनटी कॉलेज से उपाधि संपादन की। 1912 में ‘इनर टेंपल’ इस लंडन कॉलेज से बॅरिस्ट बॅरिस्टर की उपाधि संपादन की।
विवाह    – कमला के साथ (1916 में)
जवाहरलाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता के पहले और बाद में भारतीय राजनीती के मुख्य केंद्र बिंदु थे। वे महात्मा गांधी के सहायक के तौर पर भारतीय स्वतंत्रता अभियान के मुख्य नेता थे जो अंत तक भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए लड़ते रहे और स्वतंत्रता के बाद भी 1964 में अपनी मृत्यु तक देश की सेवा की। उन्हें आधुनिक भारत का रचयिता माना जाता था। पंडित संप्रदाय से होने के कारण उन्हें पंडित नेहरु भी कहा जाता था। जबकि बच्चो से उनके लगाव के कारण बच्चे उन्हें “चाचा नेहरु” के नाम से जानते थे।
वे मोतीलाल नेहरु के बेटे थे, जो एक महान वकील और राष्ट्रिय समाजसेवी थे। नेहरु ट्रिनिटी विश्वविद्यालय, कैंब्रिज से स्नातक हुए। जहा उन्होंने ने वकीली का प्रशिक्षण लिया और भारत वापिस आने के बाद उन्हें अल्लाहाबाद उच्च न्यायालय में शामिल किया गया। लेकिन उन्हें भारतीय राजनीती में ज्यादा रुचि थी और 1910 के स्वतंत्रता अभियान में वे भारतीय राजनीति में कम उम्र में ही शामिल हो गये, और बाद में भारतीय राजनीती का केंद्र बिंदु बने।
1920 में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल होकर उनके महान और प्रमुख नेता बने, और बाद में पूरी कांग्रेस पार्टी ने उन्हें एक विश्वसनीय सलाहकार माना, जिनमे गांधीजी भी शामिल थे।
1929 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में, नेहरु ने ब्रिटिश राज से सम्पूर्ण छुटकारा पाने की घोषणा की और भारत को पूरी तरह से स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की मांग की। नेहरु और कांग्रेस ने 1930 में भारतीय स्वतंत्रता अभियान का मोर्चा संभाला ताकि देश को आसानी से आज़ादी दिला सके। उनके सांप्रदायिक भारत की योजना को तब सभी का सहयोग मिला जब वे राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेता थे।
इस से अलग हुई मुस्लिम लीग बहोत कमजोर और गरीब बन चुकी थी। उनके स्वतंत्रता के अभियान को तब सफलता मिली जब 1942 के ब्रिटिश भारत छोडो अभियान में ब्रिटिश बुरी तरह से पीछे रह गये और उस समय कांग्रेस को देश की सबसे सफल और महान राजनितिक संस्था माना गया था। मुस्लिमो की बुरि हालत को देखते हुए मुहम्मद अली जिन्नाहने मुस्लिम लीग का वर्चस्व पुनर्स्थापित किया। लेकिन नेहरु और जिन्नाह का एक दुसरे की ताकत बाटने का समझौता असफल रहा और आज़ादी के बाद 1947 में ही भारत का विभाजन किया गया।
1941 में जब गांधीजी ने नेहरु को एक बुद्धिमान और सफल नेता का दर्जा दिया था उसी को देखते हुए आज़ादी के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें ही स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना। प्रधानमंत्री बनने के बाद ही, उन्होंने नविन भारत के अपने स्वप्न को साकार करने के प्रयास किये।
1950 में जब भारतीय कानून के नियम बनाये गये, तब उन्होंने भारत का आर्थिक, राजनितिक और सामाजिक विकास शुरू किया। विशेषतः उन्होंने भारत को एकतंत्र से लोकतंत्र में बदलने की कोशिश की, जिसमे बहोत सारी पार्टिया हो जो समाज का विकास करने का काम करे। तभी भारत एक लोकशाही राष्ट्र बन पायेगा। और विदेश निति में जब वे दक्षिण एशिया में भारत का नेतृत्व कर रहे थे तब भारत के विश्व विकास में अभिनव को दर्शाया।
नेहरु की नेतागिरी में कांग्रेस देश की सबसे सफल पार्टी थी जिसने हर जगह चाहे राज्य हो या लोकसभा हो विधानसभा हो हर जगह अपनी जीत का परचम लहराया था। और लगातार 1951, 1957 और 1962 के चुनावो में जित हासिल की थी। उनके अंतिम वर्षो में राजनितिक दबाव (1962 के सीनों-भारत युद्ध में असफलता) के बावजूद वे हमेशा ही भारतीय लोगो के दिलो में बसे रहेंगे। भारत में उनका जन्मदिन “बालदिवस” के रूप में मनाया जाता है।
पंडित जवाहरलाल नेहरु उर्फ़ चाचा नेहरु ने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी थी। वे सतत भारत को आज़ाद भारत बनाने के लिए ब्रिटिशो के विरुद्ध लड़ते रहे। और एक पराक्रमी और सफल नेता साबित हुए। वे हमेशा गांधीजी के आदर्शो पर चलते थे। उनका हमेशा से यह मानना था की,
“असफलता तभी आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश और सिद्धांत भूल जाते है.”

एक नजर में जवाहरलाल नेहरु की जानकारी – Information of Jawaharlal Nehru in Hindi

1912 में इग्लंड से भारत आने के बाद जवाहरलाल नेहरु इन्होंने अपने पिताजीने ज्यूनिअर बनकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकील का व्यवसाय शुरु किया।
1916 में राजनीती का कार्य करने के उद्देश से पंडित नेहरू ने गांधीजी से मुलाकात की। देश की राजनीती में भारतीय स्वतंत्र आंदोलन में हिस्सा लिया जाये, ऐसा वो चाहते थे।
1916 में उन्होंने डॉ.अॅनी बेझंट इनके होमरूल लीग में प्रवेश किया। 1918 में वो इस संघटने के सेक्रेटरी बने। उसके साथ भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस के कार्य में भी उन्होंने भाग लिया।
1920 में महात्मा गांधी ने शुरु किये हुये असहयोग आंदोलन में नेहरूजी शामील हुये। इस कारण उन्हें छह साल की सजा हुयी।
1922 – 23 में जवाहरलाल नेहरूजी इलाहाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गये।
1927 में नेहारुजीने सोव्हिएल युनियन से मुलाकात की। समाजवाद के प्रयोग से वो प्रभावित हुये और उन्ही विचारोकी ओर खीचे चले गए।
1929 में लाहोर में राष्ट्रिय कॉग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये और इसी अधिवेशन में और इसी अधिवेशन कॉग्रेस ने पुरे स्वातंत्र्य की मांग की इसी अधिवेशन भारतको स्वतंत्र बनानेका निर्णय लिया गया और ‘संपूर्ण स्वातंत्र्य’ का संकल्प पास किया गया।
यह फैसला पुरे भारतमे पहुचाने के लिए 26 जनवरी 1930 यह दिन राष्ट्रीय सभा में स्थिर किया गया। हर ग्राम में बड़ी सभाओका आयोजन किया गया। जनता ने स्वातंत्र्य के लिये लढ़नेकी शपथ ली इसी कारन 26 जनवरी यह दिन विशेष माना जाता है।
1930 में महात्मा गांधीजीने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया जिसमे नेहरुजीका शामील होना विशेष दर्जा रखता था।
1937में कॉग्रेस ने प्रातीय कानून बोर्ड चुनाव लढ़नेका फैसला लिया और बहुत बढ़िया यश संपादन किया जिसका प्रचारक भार नेहरुजी पर था।
1942 के ‘चले जाव’ आंदोलनको भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन में विशेष दर्जा है। कॉंग्रेस ने ये आंदोलन शुरु करना चाहिये इस लिये गांधीजी के मन का तैयार करने के लिए पंडित नेहरु आगे आये। उसके बाद तुरंत सरकारने उन्हें गिरफ्तार करके अहमदनगर के जैल कैद किया। वही उन्होंने ‘ऑफ इंडिया’ ये ग्रंथ लिखा।
1946 में स्थापन हुये भारत के अंतरिम सरकार ने पंतप्रधान के रूप नेहरु को चुना। भारत स्वतंत्र होने के बाद वों स्वतंत्र भारत के पहले पंतप्रधान बने। जीवन के आखीर तक वो इस पद पर रहे। 1950 में पंडित नेहरु ने नियोजन आयोग की स्थापना की।
Jawaharlal Nehru Book – क़िताबे:
  • आत्मचरित्र (1936) (Autobiography)
  • दुनिया के इतिहास का ओझरता दर्शन (1939) (Glimpses Of World History).
  • भारत की खोज (1946) (The Discovery Of India) आदी।
Jawaharlal Nehru Award – पुरस्कार:
  • 1955 में भारत का सर्वोच्च नागरी सम्मान ‘भारत रत्न’ पंडित नेहरु को देकर उन्हें सम्मानित किया गया।
Jawaharlal Nehru – विशेषता:
  • आधुनिक भारत के शिल्पकार।
  • पंडित नेहरु का जन्मदिन 14 नवम्बर ‘बालक दिन’ के रूप में मनाया जाता है।
Jawaharlal Nehru Death – मृत्यु: 27 मई 1964 को यह महापुरुष सदा के लिये चला गया।
आधुनिक भारत के निर्माता एवं विश्व शांति के अग्रदूत के रूप में पं. जवाहरलाल नेहरु का नाम सदैव इतिहास में अमर रहेगा।
Jawaharlal Nehru slogans in Hindi
  • Sankat ke samay har aak chhoti chij mayane rakhati hain.
  • Nagarikata desh ke seva main nihit hain.
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फिरोजशहा मेहता जीवनी | Pherozeshah Mehta biography in Hindi

फिरोजशहा मेहता जीवनी | Pherozeshah Mehta biography in Hindi-

सर फिरोजशहा मेहता – Pherozeshah Mehta एक पारसी भारतीय राजनितिक नेता, कार्यकर्त्ता और मुंबई भारत के वकील थे. जो उनके तरीको से ब्रिटिश सरकार से लढते थे. उनके भारतीय इतिहास में महत्त्व को हम इस तरह समझ सकते है की इतिहास के कई नेता उनसे क़ानूनी सलाह लेते थे और फिरोजशहा मेहता जी की नीतियों को अपनाकर ब्रिटिश अधिकारियो को धुल चटाते थे. फिरोजशहा मेहता जी कभी सीधे तरीके से ब्रिटिशो से नहीं लडे बल्कि वे क़ानूनी दावपेचो से ब्रिटिशो को धुल चटाते थे.

फिरोजशहा मेहता जीवनी – Pherozeshah Mehta Biography In Hindi

पूरा नाम  – फिरोजशहा मेहरवांजी मेहता
जन्म       – 4 अगस्त 1845
जन्मस्थान – बम्बई
पिता       – मेहरवांजी
शिक्षण    – 1864 में बंम्बई के एल्फिस्टन विश्वविद्यालय से बी.ए. और छे महीने बाद एम.ए. की परिक्षेमें उत्तीर्ण. 1868 में बॅरिस्टर की उपाधि संपादन की.
1873 में वे बॉम्बे नगरपालिका के नगरीय कमिश्नर बने साथ ही 1884, 1885, 1905 और 1911 में अध्यक्ष भी बने. 1890 में उन्हें भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया.

फिरोजशहा मेहता का प्रारंभिक जीवन – Feroz Shah Mehta Early Life Information in Hindi

फेरोजशाह मेर्वंजी मेहता का जन्म जन्म 4 अगस्त 1845 को बॉम्बे (मुंबई) में पारसी व्यापारी परिवार में हुआ था. मेहता Elphinstone College से ग्रेजुएट हुए और 1864 में उन्होंने M.A. की परीक्षा पास की, और इसी सम्मान के साथ 6 महीने बाद वे पारसी परिवार से मुंबई विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बने. बाद में वे लॉ की पढाई करने के लिए इंग्लैंड गये जहा लन्दन में लिंकोन इन् में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की.
1868 में वे भारत वापिस आये और उन्होंने अपनी वकिली का प्रशिक्षण भी शुरू किया जहा वे हमेशा से ही ब्रिटिश वकीलों पर हावी रहे.
आर्थर क्रावफोर्ड के क़ानूनी प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने बॉम्बे नगरपालिका को पुनर्निर्मित करने की ठानी, और अपना प्रस्ताव भी उनके सामने रखा था. और इसी और देखते हुए उन्होंने मुंबई नगरपालिका एक्ट 1872 पारित किया, और तभी से वे मुंबई महानगरपालिका के जनक कहलाते है.
और अंत में अचानक राजनीती में शामिल होने के लिए उन्हें अपना वकिली का प्रशिक्षण छोड़ना पड़ा.
सर फेरोजशाह मेहता इतिहास के महान क्रांतिकारियों में से ही एक थे. वे अपने क़ानूनी दावपेचो से बड़े से बड़े अंग्रजी अधिकारी को भी धुल चटा देते. उन्होंने अपने क़ानूनी ज्ञान की बदौलत उस समय कई राजनीतिज्ञों की सहायता की और उन्हें ब्रिटिश अधिकारियो से बचाया भी. ब्रिटिश राज होने के बावजूद उस समय कई ब्रिटिश अधिकारी सर मेहता से डरते थे.

एक नजर में फिरोजशाह की जानकारी – Pherozeshah Mehta History in Hindi

1868 में बंम्बई उच्च न्यायलय में वो वकिली करने लगे.
1872 में वो बंम्बई महापालिके के सदस्य बने. तीनबार वो अध्यक्ष भी बने. उनका 38 साल बंम्बई महापालिकेपर वर्चस्व था.
1885 में ‘बॉम्बे प्रेसिडेंसी असोसिएशन’ की स्थापना उन्होंने कि. वो उसके सचिव हुवे.
1886 में ‘बंम्बई लेजिस्लेटिव्ह कॉन्सिल’ के वो सदस्य बने.
1889 में बंम्बई विद्यापिठ्के सिनेटके सदस्य बने वैसेही बंम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेसके स्वागत समितीके अध्यक्ष हुये.
1890 (कलकत्ता) और 1909 (लाहोर) यहाके भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के अधिवेशन के उन्होंने अध्यक्षस्थान पर थे.
1892 में पांचवे बंम्बई प्रांतीक समेंलनके अध्यक्षस्थान पर थे.
1911 में ‘सेंट्रल बॅक ऑफ इंडिया’ के स्थापना में उनको महत्वपूर्ण योगदान था.
1913 में ‘द बॉम्बे क्रॉनिकल’ नामके अखबार का प्रकाशन उन्होंने किया.
फिरोजशाह मेहता संवैधानिक तरीकों से आजादी पाने की दिशा में सतत प्रयत्न करते रहे, इनके योगदान को आज भी याद किया जाता है, 5 नवंबर, 1915 के दिन उनका देहावसान हो गये.
Pherozeshah Mehta  Death – मृत्यु: 5 नव्हंबर 1915 में बंम्बई में उनका निधन हुवा.
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गोपाल गणेश आगरकर | Gopal Ganesh Agarkar Biography

गोपाल गणेश आगरकर | Gopal Ganesh Agarkar Biography-

Gopal Ganesh Agarkar – गोपाल गणेश आगरकर का सामाजिक जीवन के 15 सालो में, समाज सुधारने, शिक्षा का महत्त्व बढाने और महाराष्ट्र में सामाजिक जीवन का विकास करने में सबसे बड़ा योगदान रहा. आज इस लेख में गोपाल गणेश आगरकर जी के बारे में पढ़ते हैं.

गोपाल गणेश आगरकर – Gopal Ganesh Agarkar Biography in Hindi

पूरा नाम  – गोपाल गणेश आगरकर
जन्म       – 14 जूलाई 1856
मृत्यु        – 17 जून 1895 को उनका देहांत हुआ
जन्मस्थान – टेंभू (कराड के पास, जि. सातारा)
पिता       – गणेशराव आगरकर
माता       – सरस्वती आगरकर
शिक्षा      – 1875 में मॅट्रिक परिक्षा उत्तीर्ण. 1878 में B.A. की परिक्षा उत्तीर्ण. 1880 में M.A. की उपाधि उन्होंने संपादन की
विवाह     – यशोदा के साथ (1877 में)
पुस्तकें     – विकार विलसित, डोंगरी के जेल के 101 दिन आदी
गोपाल गणेश आगरकर / Gopal Ganesh Agarkar का जन्म 14 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के सातारा जिले के कराड तहसील के टेम्भु ग्राम में एक कोकनस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ. उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा कराड (तीसरी तक, इंग्लिश मीडियम में) ग्रहण की, और कुछ समय तक कोर्ट में क्लर्क का काम भी किया.
1878 में उन्होंने B.A की डिग्री ली और 1880 में M.A की परीक्षा दी. फिर बाद में अपना समस्त जीवन सामाजिक सेवा में व्यतीत किया.
गोपाल गणेश आगरकर ब्रिटिश राज में चित्पावन ब्राह्मण समाज सुधारक, शिक्षाविशारद, भारत में महाराष्ट्र के श्रेष्ट विचारक थे. वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सहयोगी थे, उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थाओ के निर्माण जैसे न्यू इंग्लिश स्कूल, द डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी और फेर्गुशन कॉलेज की स्थापना करने में तिलक, विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, महादेव बल्लाल नामजोशी, व्ही.एस. आप्टे, व्ही.बी. केलकर, एम.एस. गोले और एन.के धराप की बहोत मदद की.
उस समय के साप्ताहिक पत्रिका केसरी के वे पहले संपादक और संस्थापक और नियतकालिन पत्रिका के सुधारक थे. फर्गुसन महाविद्यालय के वे दूसरे प्रधानाचार्य थे और अगस्त 1892 से अपनी मृत्यु तक उस पद पे रहते हुए वहा सेवा की.
केवल 39 साल तक जीवित रहने के बावजूद उनका जीवन हमारे लिए पूर्ण रूप से एक उच्च नैतिकता, लक्ष्य को पाने के लिए पक्का इरादा, बलिदान, अपार साहस और 1% भी लालची न होने के चरित्र का उदाहरण है. जो भी व्यक्ति अपने जीवन में सामाजिक कार्य करना चाहे तो ऐसे लोगो के लिए वे एक आदर्श है. हम उनके तत्वों को अपनाकर आसानी से सामाजिक हितो के लिए काम कर सकते है.

एक नजर में गोपाल गणेश आगरकर जी के कार्य – Gopal Ganesh Agarkar History in Hindi

  • 1880 में विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, तिलक और आगरकर इन्होंने पूणा में न्यु इंग्लिश स्कूल की स्थापना की.
  • 1881 में तिलक और आगरकर इन्होंने मराठी भाषा में ‘केसरी’ और अंग्रेजी भाषामे ‘मराठा’ ये साप्ताहिक शुरु किये. ‘केसरी’ के संपादन पद की जिम्मेदारी आगरकर पर आयी.
  • दिन बदिन साप्ताहिक अधिकाधिक लोकप्रिय होने लगे. उसी में से कोल्हापूर के दिवाण बर्वे इनके गलत कारोबार पर टिका की, उस वजह से उनके उपर बर्वे इन्होंने मानहानी का मामला दर्ज करवाया. उसमे बर्वे की जीत हुयी. और तिलक – आगरकर को 1882 में 101 दिन की जेल हुयी. उन्हें बम्बई को डोंगरी के जेल में रखा. इस समय में आगरकर ने शेक्सपियर के ‘हॅम्लेट’ इस नाटक का ‘विकार विलसित’ इस नाम से मराठी अनुवाद किया वैसेही जेल मे जो अनुभव आये, उसका विवरण करनेवाला ‘डोंगरी के जेल मे के हमारे 101 दिन’ इन नाम की छोटीसी किताब उन्होंने जेल से छूटने बाद लिखी.
  • 1884 मे तिलक – आगरकर ने पूणा के डेक्कन एज्युकेशन सोसायटी की स्थापना की. वैसे ही 1885 मे इस संस्था के तरफ से पूणा मे ही फर्ग्युसन कॉलेज खोला गया.
  • केसरी और मराठा साप्ताहिक में से तिलक ये सामाजिक जागृती को ज्यादा एहमियत देने लगे. आगरकर ने सामाजिक सुधारना को प्राधान्य देणे का निर्णय लिया था. उस वजह से 1887 मे उन्होंने केसरी के संपादन पद का इस्तीफा दिया.
  • 1888 में उन्होंने ‘सुधारक’ नाम का अपना स्वतंत्र साप्ताहिक शुरु किया. ‘सुधारक’ मराठी और अंग्रेजी इन दोनों भाषा मे प्रसिद्ध किये जाते थे. उनके मराठी आवृत्ती के संपादन की जिम्मेदारी आगरकर ने और अंग्रेजी आवृत्ती के संपादन की जिम्मेदारी गोपाल कृष्ण गोखले इन्होंने संभाली थी. ‘सुधारक’ साप्ताहिक मे से अपने समाज सुधारणा के विचार उन्होंने बड़े लढाउ भाषा मे रखे.
  • आगे फर्ग्युसन कॉलेज के पहले प्राचार्य वा. शि. आपटे इनकी 1892 मे अचानक मौत हुयी. उसके बाद आगरकर की प्राचार्य के रूप मे नियुक्त किया गया. आखीर तक वो उस स्थान पर थे.
  • आगरकर ने भारतीय समाज मे के बालविवाह, मुंडन, नस्लीय भेदभाव, अस्पृश्यता इन जैसे बहोत अनिष्ट परंपरा और रुढ़ी का विरोध किया था.
  • वांछनीय होगा वो बोलुंगा और पूरा होंगा वही करूंगा” ये उनका आदर्श वाक्य था.
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भगतसिंह जीवनी | Bhagat Singh Biography in Hindi

भगतसिंह  जीवनी | Bhagat Singh Biography in Hindi-

Bhagat Singh – भारत के सबसे प्रभावशाली क्रान्तिकारियो की सूचि में भगत सिंह का नाम सबसे पहले लिया जाता है। जब कभी भी हम उन शहीदों के बारे में सोचते है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दी तब हम बड़े गर्व से भगत सिंह का नाम ले सकते है।
1929 में उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये ब्रिटिश असेंबली पर बम फेके थे और इसी वजह से उन्हें 116 दिनों की जेल भी हुई थी। भगत सिंह को महात्मा गांधी की अहिंसा पर भरोसा नही था।
23 साल की आयु ने उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी दे दी गयी थी और मरते वक्त भी उन्हीने फाँसी के फंदे को चूमकर मौत का ख़ुशी से स्वागत किया था। तभीसे भगत सिंह देश के युवाओ के प्रेरणास्त्रोत बने हुए है।

शहीद भगत सिंह जीवनी – Bhagat Singh in Hindi

पूरा नाम  – सरदार भगतसिंह  किशंसिंह 
जन्म       – २८ सितंबर १९०७
जन्मस्थान – बंगा (जि. लायलपुर, अभी पाकिस्तान मे)
पिता       – किशनसिंग
माता       – विद्यावती
शिक्षा      – १९२३ में इंटरमिजिएट परिक्षा उत्तीर्ण।
विवाह     – विवाह नही किया।
“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है.”
भगत सिंह उर्फ़ शहीद भगत सिंह / Bhagat Singh एक भारतीय समाजवादी थे जो भारतीय स्वतंत्रता अभियान के एक प्रभावशाली क्रांतिकारी माने जाते है। जिनका जन्म पंजाब के सीख परिवार में हुआ जो हमेशा से ब्रिटिश राज के विरुद्ध लड़ने के लिए तयार था। उन्होंने अपने युवा दिनों में यूरोपियन क्रांतिकारियों से अभ्यास भी ले रखा था और अराजकतावादी और मार्क्सवादी विचार धाराओ से प्रभावित थे।
उन्होंने अपने जीवन काल में कई क्रन्तिकारी संस्थाओ के साथ मिलकर काम किया जिसमे हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन भी शामिल है, जिसने 1928 में अपना नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन रखा।
Bhagat Singh (संधू जाट) का जन्म 1907 में किशन सिंह और विद्यावती को चाल नंबर 105, जीबी, बंगा ग्राम, जरंवाला तहसील, ल्याल्लापुर जिला, पंजाब में हुआ, जो ब्रिटिश कालीन भारत का ही एक प्रान्त था।
उनका जन्म उसी समय हुआ था जब उनके पिता और उनके दो चाचा को जेल से रिहा किया गया था। उनके परिवार के सदस्य सीख थे, जिनमे से कुछ भारतीय स्वतंत्रता अभियान में सक्रीय रूप से शामिल थे, और बाकी महाराजा रणजीत सिंहकी सेना की सेवा किया करते थे।
उनके पूर्वजो का ग्राम खटकर कलां था, जो नवाशहर, पंजाब (अभी इसका नाम बदलकर शहीद भगत सिंह नगर रखा गया है) से कुछ ही दुरी पर था।
उनका परिवार राजनितिक रूप से सक्रीय था। उनके दादा अर्जुन सिंह, हिंदु आर्य समाज की पुनर्निर्मिति के अभियान में दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे। इसका भगत सिंह पर बहोत प्रभाव पड़ा।
भगत सिंह के पिता और चाचा करतार सिंह और हर दयाल सिंह द्वारा चलाई जा रही ग़दर पार्टी के भी सदस्य थे। अरजित सिंह पर बहोत सारे क़ानूनी मुक़दमे होने के कारण उन्हें निर्वासित किया गया जबकि स्वरण सिंह की 1910 में लाहौर में ही जेल से रिहा होने बाद मृत्यु हो गयी।
भगत सिंह उनकी आयु में दुसरे सिक्खों की तरह लाहौर की खालसा हाई स्कूल में नहीं गये थे। क्यू की उनके दादा उन्हें ब्रिटिश सरकार की शिक्षा नहीं देना चाहते थे। जहा बाद में उन्हें दयानंद वैदिक हाई स्कूल में डाला गया जो आर्य समाज की ही एक संस्था थी।
1919 में, जब वे केवल 12 साल के थे, सिंह जलियांवाला बाग़ में हजारो निःशस्त्र लोगो को मारा गया। जब वे 14 साल के थे वे उन लोगो में से थे जो अपनी रक्षा के लिए या देश की रक्षा के लिए ब्रिटिशो को मारते थे।
भगत सिंह ने कभी महात्मा गांधी के अहिंसा के तत्व को नहीं अपनाया, उनका यही मानना था की स्वतंत्रता पाने के लिए हिंसक बनना बहोत जरुरी है। वे हमेशा से गांधीजी के अहिंसा के अभियान का विरोध करते थे, क्यू की उनके अनुसार 1922 के चौरी चौरा कांड में मारे गये ग्रामीण लोगो के पीछे का कारण अहिंसक होना ही था।
तभी से भगत सिंह ने कुछ युवायो के साथ मिलकर क्रान्तिकारी अभियान की शुरुवात की जिसका मुख्य उद्देश हिसक रूप से ब्रिटिश राज को खत्म करना था।
1923 में, सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज में शामिल हुए, जहा उन्होंने दूसरी गतिविधियों में भी सहभाग लिया जैसे ही नाटकीय समाज (ढोंगी समाज) में सहभाग लेना।
1923 में, पंजाब Hindi साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित निबंध स्पर्धा जीती, जिसमे उन्होंने पंजाब की समस्याओ के बारे में लिखा था। वे इटली के Giuseppe Mazzini अभियान से बहोत प्रेरित हुए थे और इसी को देखते हुए उन्होंने मार्च 1926 में नौजवान भारत सभा में भारतीय राष्ट्रिय युवा संस्था की स्थापना की।
बाद में वे हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में शामिल हुए, जिसमे कई बहादुर नेता थे जैसे चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल और शहीद अश्फल्लाह खान।
भगत सिंह कहते है की,
“मेरा जीवन किसी श्रेष्ट अभियान को पूरा करने के लिए हुआ है, और यह अभियान देश को आज़ादी दिलाना ही है। और इस समय कोई भी व्यक्ति कोई भी प्रलोभन मुझे मेरे लक्ष्य प्राप्ति से नहीं रोक सकता।”
युवाओं पर भगत सिंह के इस प्रभाव को देखते हुए पुलिस ने मई 1927 में भगत सिंह को अपनी हिरासत में लिया ये कहकर की वे अक्टूबर 1926 में हुए लाहौर बम धमाके में शामिल थे। और हिरासत में लेने के पाच हफ्तों बाद उन्हें जमानत पर रिहा किया गया।
भगत सिंह अमृतसर में बिकने वाले उर्दू और पंजाबी अखबारों के लिए लिखते भी थे और उसके संपादक भी थे। और इन्ही अखबारों को नौजवान भारत सभा में प्रकाशित किया जाता जिसमे ब्रिटिशो की खाल खीच रखी थी।
वे कीर्ति किसान पार्टी के अखबार कीर्ति के लिए भी लिखते थे साथ ही दिल्ली में प्रकाशित होने वाले वीर अर्जुन अखबार के लिए भी लिखते थे। अपने लेख में ज्यादातर बलवंत, रणजीत और विद्रोही नाम का उपयोग करते थे।
भगत सिंह लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे जिसमे भगत सिंह ने एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सौन्देर्स की हत्या की। पुलिस ने भगत सिंह को पकड़ने के लिए कई असफल प्रयत्न किये और हमेशा वह भगत सिंह को पकड़ने में नाकाम रही। और कुछ समय बाद ही भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर प्रधान विधि सदन पर दो बम और एक पत्र फेका।
जहा वे दोनों अपनी योजना के अनुसार पकडे गये। जहा एक हत्या के आरोप में उन्हें जेल में भेजा गया, और जब उन्होंने यूरोपियन कैदियों को समान हक्क दिलाने के लिए 116 दिन के उपवास की घोषणा की तब दूर दूर से उन्हें पुरे राष्ट्र की सहायता मिली।
इस कालावधि में ब्रिटिश अफसरों ने उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत जमा किये और इंग्लैंड उच्च न्यायालय में अपनी अपील को रखते हुए, भगत सिंह को 23 साल की अल्पायु में फ़ासी की सजा दी गयी।
उनके इस बलिदान ने भारतीय युवाओ को राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए उठकर लड़ने के लिए प्रेरित किया। भारतीय सिनेमा की कई फिल्मो में भगत सिंह को युवायो का प्रेरणास्थान भी माना गया। और आज भी कई युवा उन्हें अपना आदर्श मानते है।
Bhagat Singh में बचपन से ही देशसेवा की प्रेरणा थी। उन्होंने हमेशा ब्रिटिश राज का विरोध किया। और जो उम्र खेलने-कूदने की होती है उस उम्र में उन्होंने एक क्रांतिकारी आन्दोलन किया था। भगत सिंह की बहादुरी के कई किस्से हमें इतिहास में देखने मिलेंगे।
वे खुद तो बहादुर थे ही लेकिन उन्होंने अपने साथियों को भी बहादुर बनाया था और ब्रिटिशो को अल्पायु में भी धुल चटाई थी। वे भारतीय युवायो के आदर्श है और आज के युवायो को भी उन्ही की तरह स्फुर्तिला बनने की कोशिश करनी चाहिये।

एक नजर में भगतसिंह  की जानकारी – Bhagat Singh History In Hindi

1) १९२४ में भगतसिंग / Bhagat Singh कानपूर गये। वह पहलीबार अखबार बेचकर उन्हें अपना घर चलाना पडा। बाद में एक क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी इनके संपर्क में वो आये। उनके ‘प्रताप’ अखबार के कार्यालय में भगतसिंग को जगा मिली।
2) १९२५ में भगतसिंग / Bhagat Singh और उनके साथी दोस्तों ने नवजवान भारत सभा की स्थापना की।
3) दशहरे को निकाली झाकी ने कुछ बदमाश लोगोने बॉम्ब डाला था। इस के कारण कुछ लोगोकी मौत हुयी। इस के पीछे क्रांतिकारीयोका हात होंगा, ऐसा पुलिस को शक था। उसके लिये भगतसिंग को पड़कर उनको जेल भेजा गया पर न्यायालय से वो बेकसूर छुट कर आये।
4) ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएन’ इस क्रांतिकारी संघटने के भगतसिंग सक्रीय कार्यकर्ता हुये।
5) ‘किर्ती’ और ‘अकाली’ नाम के अखबारों के लिये भगतसिंग लेख लिखने लगे।
6) समाजवादी विचारों से प्रभावित हुये युवकोंने देशव्यापी क्रांतिकारी संघटना खडी करने का निर्णय लिया। चंद्रशेखर आझाद, भगतसिंग, सुखदेव आदी। युवक इस मुख्य थे। ये सभी क्रांतिकारी धर्मनिरपेक्ष विचारों के थे।
7) १९२८ में दिल्ली के फिरोजशहा कोटला मैदान पर हुयी बैठक में इन युवकोने ‘हिन्दुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन’ इस संघटने की स्थापना की भारत को ब्रिटीशोके शोषण से आझाद करना ये उस संघटना का उददेश था।
उसके साथ ही किसान – कामगार का शोषण करने वाली अन्यायी सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था को भी बदलना था। संघटने के नाम में ‘सोशॅलिस्ट’ इस शब्द का अंतर्भाव करने की सुचना भगतसिंग ने रखी और वो सभी ने मंजूर की।
शस्त्र इकठ्ठा करना और कार्यक्रमों की प्रवर्तन करना ये कम इस स्वतंत्र विभाग के तरफ सौपी गयी। इस विभाग का नाम ‘हिंदुस्तान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ था और उसके मुख्य थे चंद्रशेखर आझाद।
8) १९२७ में भारत में कुछ सुधारना देने के उद्दश से ब्रिटिश सरकार ने ‘सायमन कमीशन’ की नियुक्ति की पर सायमन कमीशन में सातो सदस्य ये अंग्रेज थे। उसमे एक भी भारतीय नही था। इसलिये भारतीय रास्ट्रीय कॉग्रेस ने सायमन कमीशन पर ‘बहिष्कार’ डालने का निर्णय लिया।
उसके अनुसार जब सायमन कमीशन लाहोर आया तब पंजाब केसरी लाला लजपतराय इनके नेतृत्त्व में निषेध के लिये बड़ा मोर्चा निकाला था। पुलिस के निर्दयता से किये हुये लाठीचार्ज में लाला लजपत राय घायल हुये और दो सप्ताह बाद अस्पताल में उनकी मौत हुयी।
9) लालाजि के मौत के बाद देश में सभी तरफ लोग क्रोधित हुये। ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन ने तो लालाजी की हत्या का बदला लेने का निर्णय लिया। लालाजी के मौत के जिम्मेदार स्कॉट इस अधिकारी को मरने की योजना बनायीं गयी। इस काम के लिए भगतसिंग, चंद्रशेखर आझाद, राजगुरु, जयगोपाल इनको चुना गया।
उन्होंने १७ दिसंबर १९२८ को स्कॉट को मरने की तैयारी की लेकिन इस प्रयास में स्कॉट के अलावा सँडर्स ये दूसरा अंग्रेज अधिकारी मारा गया। इस घटना के बाद भगतसिंग / Bhagat Singh भेष बदलके कोलकता को गये। उस जगह उनकी जतिंद्रनाथ दास से पहचान हुई उनको बॉम्ब बनाने की कला आती थी। भगतसिंग और जतिंद्रनाथ इन्होंने बम बनाने की फैक्टरी आग्रा में शुरु किया।
10) उसके बाद भगतसिंग / Bhagat Singh और उनके सहयोगी इनके उपर सरकार ने अलग – अलग आरोप लगाये। पहला आरोप उनके उपर  कानून बोर्ड के हॉल में बम डालने का था। इस आरोप में भगतसिंग और बटुकेश्वर दत्त इन दोनों को आजन्म कारावास की सजा हुयी। लेकिन सँडर्स के खून के आरोप में भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन्हें दोषी करार करके फासी की सजा सुनाई गयी।
Bhagat Singh Death / मृत्यु   – २३ मार्च १९३१ को भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन तीनो को महान क्रांतिकारीयोको फासी दी गयी। ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘भारत माता की जय’ की घोषणा देते हुये उन्होंने हसते-हसते मौत को गले लगाया।
Bhagat Singh Slogans & Quotes:
“सीने पर जो जख्म हैं, सब फूलो के गुच्छे हैं। हमें पागल ही रहने डॉ हम पागल ही अच्छे हैं।”
“मैं एक मानव हू और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता हैं उससे मुझे मतलब हैं !”
“जिंदगी अपने दम पर जी जाती हैं, दूसरो के कंधो पर तो जनाजे निकलते हैं।”
“सरे जहा से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा।”
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